श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य  »  श्लोक d64
 
 
श्लोक  14.98.d64 
मन्वन्तरं तु तत्रैव क्रीडित्वा देवपूजित:।
मानुष्यलोकमागम्य भोगवान् ब्राह्मणो भवेत्॥
 
 
अनुवाद
वह वहाँ एक मन्वन्तर तक रहता है, देवताओं द्वारा पूजित होता है और क्रीड़ा करता रहता है। तत्पश्चात् वह मनुष्य लोक में आकर सुख भोगने वाला ब्राह्मण बन जाता है।
 
‘He remains there for one Manvantara and is worshipped by the gods and keeps playing. After that he comes to the human world and becomes a Brahmin who enjoys pleasures.'
 
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)


 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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