|
|
|
श्लोक 14.98.d64  |
मन्वन्तरं तु तत्रैव क्रीडित्वा देवपूजित:।
मानुष्यलोकमागम्य भोगवान् ब्राह्मणो भवेत्॥ |
|
|
अनुवाद |
वह वहाँ एक मन्वन्तर तक रहता है, देवताओं द्वारा पूजित होता है और क्रीड़ा करता रहता है। तत्पश्चात् वह मनुष्य लोक में आकर सुख भोगने वाला ब्राह्मण बन जाता है। |
|
‘He remains there for one Manvantara and is worshipped by the gods and keeps playing. After that he comes to the human world and becomes a Brahmin who enjoys pleasures.' |
|
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|