श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य  »  श्लोक d3
 
 
श्लोक  14.98.d3 
सर्वसम्भव धर्मज्ञ सर्वधर्मप्रवर्तक।
सर्वदानफलं सौम्य कथयस्व ममाच्युत॥
 
 
अनुवाद
धर्मज्ञ! सब कुछ आपसे ही उत्पन्न हुआ है और आप ही सभी धर्मों के प्रवर्तक हैं। हे शान्तप्रभु अच्युत! मुझे सभी प्रकार के दानों का फल बताइए।'
 
‘Dharmagya! Everything has originated from you and you are the originator of all religions. O peaceful Achyuta! Tell me the fruits of all kinds of donations.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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