श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य » श्लोक d22 |
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| | श्लोक 14.98.d22  | यस्मादन्नात् प्रवर्तन्ते धर्मार्थौ काम एव च।
तस्मादन्नात् परं दानं नामुत्रेह च पाण्डव॥ | | | अनुवाद | पाण्डु नंदन! धर्म, अर्थ और काम, ये सब अन्न से ही पूर्ण होते हैं। अतः इस लोक में और परलोक में अन्न से बढ़कर कोई दान नहीं है।' | | ‘Pandu Nandan! Dharma, Artha and Kama are fulfilled only by food. Hence, there is no charity greater than food in this world or the next. |
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