श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य  »  श्लोक d21
 
 
श्लोक  14.98.d21 
यस्मादन्नात् प्रजा: सर्वा: कल्पे कल्पेऽसृजत् प्रभु:।
तस्मादन्नात् परं दानं न भूतं न भविष्यति॥
 
 
अनुवाद
सर्वशक्तिमान प्रजापति ने प्रत्येक कल्प में अन्न से ही समस्त प्राणियों की उत्पत्ति की है; अतः अन्न से बढ़कर कोई दान न कभी हुआ है और न कभी होगा।
 
‘The all-powerful Prajapati has created all beings from food in every kalpa; hence there has never been and will never be any gift greater than food.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.