श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 98: जल-दान, अन्न-दान और अतिथि-सत्कारका माहात्म्य  »  श्लोक d15
 
 
श्लोक  14.98.d15 
अन्नं प्रजापते रूपमन्नं प्रजननं स्मृतम्।
सर्वभूतमयं चान्नं जीवश्चान्नमय: स्मृत:॥
 
 
अनुवाद
अन्न प्रजापति का स्वरूप है। अन्न ही सृष्टि का कारण है। इसलिए अन्न सर्वव्यापी तत्व है और सभी जीव अन्न से बने माने जाते हैं।
 
‘Food is the form of Prajapati. Food is the reason for creation. Therefore food is the universal element and all living beings are considered to be made of food.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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