श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 97: यमलोकके मार्गका कष्ट और उससे बचनेके उपाय » श्लोक d21 |
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| | श्लोक 14.97.d21  | अन्धकारमपारं तं महाघोरं तमोवृतम्।
दु:खान्तं दुष्प्रतारं च दुर्गमं पापकर्मणाम्॥ | | | अनुवाद | पाप कर्म करने वालों का मार्ग अंधकार से भरा है और उसका कोई अंत नहीं है। वह मार्ग अत्यंत भयानक, अंधकार से भरा, कठिन, दुर्गम है और अंत तक केवल दुःख ही लाता है। | | The path of those who commit sinful deeds is full of darkness and there is no end to it. That path is very terrifying, full of darkness, difficult, inaccessible and brings only sorrow till the end. |
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