श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 83: दक्षिण और पश्चिम समुद्रके तटवर्ती देशोंमें होते हुए अश्वका द्वारका, पञ्चनद एवं गान्धार देशमें प्रवेश  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  14.83.1 
वैशम्पायन उवाच
मागधेनार्चितो राजन् पाण्डव: श्वेतवाहन:।
दक्षिणां दिशमास्थाय चारयामास तं हयम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! मगधराज द्वारा पूजित श्वेत वाहन पाण्डुपुत्र अर्जुन दक्षिण दिशा में आश्रय लेकर उस अश्व को घुमाने लगे॥1॥
 
Vaishampayanji says – Janamejaya! Arjun, son of Pandu, who is worshiped by the king of Magadha, the white vehicle, took shelter in the south direction and started rotating that horse. 1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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