श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 77: अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध  »  श्लोक d1-1
 
 
श्लोक  14.77.d1-1 
वैशम्पायन उवाच
(जित्वा प्रसाद्य राजानं भगदत्तसुतं तदा।
विसृज्य याते तुरगे सैन्धवान् प्रति भारत॥ )
सैन्धवैरभवद् युद्धं ततस्तस्य किरीटिन:।
हतशेषैर्महाराज हतानां च सुतैरपि॥ १॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - भरतनन्दन! महाराज भगदत्त के पुत्र राजा वज्रदत्त को परास्त करके, उन्हें विदा करके जब अर्जुन का घोड़ा सिन्धु देश में गया, तब वहाँ किरीटधारी अर्जुन और महाभारत युद्ध में मरते-मरते बचे हुए सिन्धु देश के योद्धाओं तथा मारे गए राजाओं के पुत्रों के बीच घोर युद्ध हुआ॥1॥
 
Vaishampayanji says – Bharatanandan! After defeating and appeasing King Vajradatta, son of Maharaj Bhagadatta, after seeing him off, Arjuna's horse went to Sindhu country, then there was a fierce battle between crowned Arjuna and the warriors of Sindhu country who had escaped death in the Mahabharata war and the sons of the slain kings. 1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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