श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 6: नारदजीकी आज्ञासे मरुत्तका उनकी बतायी हुई युक्तिके अनुसार संवर्तसे भेंट करना  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  14.6.4-5 
भगवन् यन्मया पूर्वमभिगम्य तपोधन।
कृतोऽभिसंधिर्यज्ञस्य भवतो वचनाद् गुरो॥ ४॥
तमहं यष्टुमिच्छामि सम्भारा: सम्भृताश्च मे।
याज्योऽस्मि भवत: साधो तत् प्राप्नुहि विधत्स्व च॥ ५॥
 
 
अनुवाद
‘प्रभो! तपस्या! गुरुदेव! मैंने एक बार आपसे आकर यज्ञ के विषय में सलाह ली थी और आपने मुझे उसकी आज्ञा दी थी, अब मैं उस यज्ञ को आरम्भ करना चाहता हूँ। मैंने आपकी आज्ञा के अनुसार सारी सामग्री एकत्रित कर ली है। हे मुनि! मैं भी आपका पुराना यजमान हूँ। अतः पधारिए, मेरा यज्ञ सम्पन्न कराइए।’॥4-5॥
 
‘Lord! Tapasya! Gurudev! I had once come and taken advice from you regarding the yagya and you had given me orders for it, now I want to start that yagya. I have collected all the materials as per your instructions. O saint! I am also your old Yajaman. So come, please get my yagya done.’॥ 4-5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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