श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 6: नारदजीकी आज्ञासे मरुत्तका उनकी बतायी हुई युक्तिके अनुसार संवर्तसे भेंट करना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  14.6.12 
राजर्षे नातिहृष्टोऽसि कच्चित् क्षेमं तवानघ।
क्व गतोऽसि कुतश्चेदमप्रीतिस्थानमागतम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
राजन्! आप बहुत प्रसन्न नहीं दिखाई देते। हे निष्पाप राजा! क्या आपका सब कुशल है? आप कहाँ चले गए थे और आपको यह पश्चाताप क्यों करना पड़ा?॥12॥
 
‘King! You do not look very happy. Sinless king! Is everything alright with you? Where did you go and why have you had to face this regret?॥ 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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