श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 51: तपस्याका प्रभाव, आत्माका स्वरूप और उसके ज्ञानकी महिमा तथा अनुगीताका उपसंहार  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  14.51.2 
अधिष्ठाता मनो नित्यं भूतानां महतां तथा।
बुद्धिरैश्वर्यमाचष्टे क्षेत्रज्ञश्च स उच्यते॥ २॥
 
 
अनुवाद
पाँचों भूतों का शाश्वत आधार मन है। जिसकी शक्ति बुद्धि द्वारा प्रकट होती है, उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं।॥2॥
 
The eternal basis of the five elements is the mind. The one whose power is revealed by the intellect is called the knower of the field.॥ 2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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