श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 5: इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  14.5.6 
स बाध्यमान: सततं भ्रात्रा ज्येष्ठेन भारत।
अर्थानुत्सृज्य दिग्वासा वनवासमरोचयत्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
भरत! अपने बड़े भाई के द्वारा निरंतर सताए जाने पर संवर्त ने घर छोड़ दिया, धन-सम्पत्ति का मोह त्याग दिया और दिगम्बर होकर वन में रहने लगे। उन्हें घर से भी वनवास अधिक सुखदायक लगा ॥6॥
 
Bharat! Being constantly harassed by his elder brother, Samvarta left home, abandoned all his attachment to wealth and became a Digambara and started living in the forest. He found exile more pleasurable than home. ॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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