श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 5: इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना » श्लोक 10-11 |
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| | श्लोक 14.5.10-11  | वाहनं यस्य योधाश्च मित्राणि विविधानि च।
शयनानि च मुख्यानि महार्हाणि च सर्वश:॥ १०॥
ध्यानादेवाभवद् राजन् मुखवातेन सर्वश:।
स गुणै: पार्थिवान् सर्वान् वशे चक्रे नराधिप:॥ ११॥ | | | अनुवाद | राजन! उसके लिए वाहन, योद्धा, नाना प्रकार के मित्र, उत्तम एवं सभी प्रकार के बहुमूल्य शय्याएँ केवल विचार करने से तथा उसके मुख से उत्पन्न वायु के द्वारा ही प्रकट हो गए थे। राजा करंधम ने अपने गुणों से समस्त राजाओं को अपने वश में कर लिया था। 10-11॥ | | Rajan! For him, vehicles, warriors, various types of friends, best and all kinds of precious beds appeared only through thinking and through the air born from his mouth. King Karandham had brought all the kings under his control with his qualities. 10-11॥ |
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