श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 5: इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  14.5.1 
युधिष्ठिर उवाच
कथंवीर्य: समभवत् स राजा वदतां वर।
कथं च जातरूपेण समयुज्यत स द्विज॥ १॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर ने पूछा - वक्ताओं में श्रेष्ठ महर्षि! राजा मरुत्त का पराक्रम क्या था? और उन्हें सोना कैसे प्राप्त हुआ?
 
Yudhishthir asked – Maharishi, the best among speakers! What was the bravery of King Marutta? And how did they get the gold? 1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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