श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन » श्लोक 9 |
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| | श्लोक 14.46.9  | संस्कृत: सर्वसंस्कारैस्तथैव ब्रह्मचर्यवान्।
ग्रामान्निष्क्रम्य चारण्ये मुनि: प्रव्रजितो वसेत् ॥ ९॥ | | | अनुवाद | वानप्रस्थ मुनि को चाहिए कि वह सब प्रकार के अनुष्ठान करके अपने को शुद्ध करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, गृहस्थाश्रम का त्याग करे और गांव छोड़कर वन में रहने लगे।॥9॥ | | A Vanaprastha sage should purify himself by performing all kinds of rituals, observe celibacy, and abandon homely attachments and leave the village to live in the forest.॥ 9॥ |
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