श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  14.46.6 
मेखला च भवेन्मौञ्जी जटी नित्योदकस्तथा।
यज्ञोपवीती स्वाध्यायी अलुब्धो नियतव्रत:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह सरसों का मेखला धारण करे, जटाधारी हो, प्रतिदिन स्नान करे, जनेऊ धारण करे, वेदों का स्वाध्याय करे और लोभ से रहित होकर नियमित व्रत का पालन करे ॥6॥
 
A brahmacārī should wear a belt of munj (mustard seed), wear matted hair, bathe daily, wear the sacred thread, devote himself to the study of the Vedas and, being devoid of greed, should regularly observe fasts. ॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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