श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन » श्लोक 52 |
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| | श्लोक 14.46.52  | गूढधर्माश्रितो विद्वान् विज्ञानचरितं चरेत्।
अमूढो मूढरूपेण चरेद् धर्ममदूषयन्॥ ५२॥ | | | अनुवाद | गुप्त धर्म में तल्लीन विद्वान् पुरुष को शास्त्रसम्मत आचरण करना उचित है। मूर्ख न होने पर भी उसे मूर्ख जैसा आचरण करना चाहिए, किन्तु अपने किसी भी आचरण से धर्म को कलंकित नहीं करना चाहिए ॥ 52॥ | | It is appropriate for a learned person immersed in the secret religion to behave in accordance with science. Even though he is not a fool, he should behave like one, but he should not tarnish the religion by any of his behavior. ॥ 52॥ |
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