श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  14.46.5 
क्षौमं कार्पासिकं चापि मृगाजिनमथापि वा।
सर्वं काषायरक्तं वा वासो वापि द्विजस्य ह॥ ५॥
 
 
अनुवाद
रेशमी या सूती वस्त्र अथवा मृगचर्म धारण करना चाहिए। अथवा ब्राह्मण के लिए सभी वस्त्र भगवा रंग के होने चाहिए। ॥5॥
 
One should wear silk or cotton clothes or deerskin. Or for a Brahmin all the clothes should be of saffron colour. ॥ 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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