श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  14.46.45 
निर्द्वन्द्वो निर्नमस्कारो नि:स्वाहाकार एव च।
निर्ममो निरहंकारो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
द्वन्द्वों से प्रभावित न हो, किसी के आगे न झुके। आत्मयज्ञ (अग्निहोत्र आदि) का त्याग कर दे। आसक्ति और अहंकार से मुक्त हो, योग के कल्याण की चिंता न करे। तेरा मन विजय प्राप्त करे। 45॥
 
Do not be influenced by conflicts, do not bow before anyone. Abandon self-sacrifice (Agnihotra etc.). Be free from attachment and ego, do not worry about the welfare of yoga. May your mind achieve victory. 45॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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