श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन » श्लोक 44 |
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| | श्लोक 14.46.44  | इन्द्रियाण्युपसंहृत्य कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश:।
क्षीणेन्द्रियमनोबुद्धिर्निरीह: सर्वतत्त्ववित्॥ ४४॥ | | | अनुवाद | जैसे कछुआ अपने अंगों को सब ओर से समेट लेता है, वैसे ही तुम भी इन्द्रियों को विषयों से हटा लो। इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि को क्षीण करके निश्चल हो जाओ। समस्त तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करो ॥ 44॥ | | Just as a tortoise withdraws its limbs from all sides, similarly withdraw the senses from the objects. Weaken the senses, mind and intellect and become motionless. Acquire the knowledge of all the elements. ॥ 44॥ |
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