श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  14.46.43 
न चक्षुषा न मनसा न वाचा दूषयेत् क्वचित्।
न प्रत्यक्षं परोक्षं वा किंचिद् दुष्टं समाचरेत्॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
कहीं भी बुरी दृष्टि, मन या वाणी न डालें। सबके सामने या दूसरों की आँखों से छिपकर कोई बुराई न करें। ॥43॥
 
Do not cast evil eyes, mind or speech anywhere. Do not do any evil in front of everyone or by hiding from the eyes of others. ॥ 43॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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