वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री महाभारत
»
पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व
»
अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन
»
श्लोक 43
श्लोक
14.46.43
न चक्षुषा न मनसा न वाचा दूषयेत् क्वचित्।
न प्रत्यक्षं परोक्षं वा किंचिद् दुष्टं समाचरेत्॥ ४३॥
अनुवाद
कहीं भी बुरी दृष्टि, मन या वाणी न डालें। सबके सामने या दूसरों की आँखों से छिपकर कोई बुराई न करें। ॥43॥
Do not cast evil eyes, mind or speech anywhere. Do not do any evil in front of everyone or by hiding from the eyes of others. ॥ 43॥
✨ ai-generated
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.