श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन » श्लोक 41 |
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| | श्लोक 14.46.41  | परं नोद्वेजयेत् काचिन्न च कस्यचिदुद्विजेत्।
विश्वास्य: सर्वभूतानामग्रॺो मोक्षविदुच्यते॥ ४१॥ | | | अनुवाद | न तो किसी दूसरे को कष्ट दो और न स्वयं किसी से कष्ट पाओ। जो सब प्राणियों का विश्वासपात्र बन जाता है, वही श्रेष्ठ तथा मोक्ष और धर्म का ज्ञाता माना जाता है ॥41॥ | | Do not disturb anyone else and do not be disturbed by anyone yourself. He who becomes the confidant of all beings is considered the best and the knower of salvation and religion. ॥ 41॥ |
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