श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  14.46.40 
सर्वभावानतिक्रम्य लघुमात्र: परिव्रजेत्।
सम: सर्वेषु भूतेषु स्थावरेषु चरेषु च॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
सब प्रकार की वस्तुओं में आसक्ति का त्याग करके, थोड़े से ही संतुष्ट होकर सर्वत्र विचरण करते रहो। समस्त चर-अचर प्राणियों के प्रति समभाव रखो। 40॥
 
Violating attachment to all kinds of things, be satisfied with a little and keep wandering everywhere. Have equal feelings towards all living and movable beings. 40॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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