श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  14.46.39 
आशीर्युक्तानि सर्वाणि हिंसायुक्तानि यानि च।
लोकसंग्रहधर्मं च नैव कुर्यान्न कारयेत्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
कामना और हिंसा से युक्त समस्त सांसारिक कर्म न तो स्वयं करें और न ही दूसरों से करवाएँ ॥39॥
 
One should neither perform nor get others to perform all worldly deeds that are filled with desire and violence. ॥ 39॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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