श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  14.46.37 
न शिल्पजीविकां जीवेद्धिरण्यं नोत कामयेत्।
न द्वेष्टा नोपदेष्टा च भवेच्च निरुपस्कृत:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
वह शिल्पकला करके जीविका न चलाए, सोने की इच्छा न करे, किसी से द्वेष न करे, उपदेशक न बने और संचय से रहित रहे। 37.
 
He should not earn his livelihood by doing craftsmanship, should not desire gold, should not hate anyone, should not become a preacher and should remain devoid of hoardings. 37.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.