श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  14.46.36 
मृदमापस्तथान्नानि पत्रपुष्पफलानि च।
असंवृतानि गृह्णीयात् प्रवृत्तानि च कार्यवान्॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
मिट्टी, जल, अन्न, पत्ते, फूल और फल - यदि ये वस्तुएँ किसी के पास न हों, तो कोई सक्रिय संन्यासी आवश्यकता पड़ने पर इनका उपयोग कर सकता है ॥ 36॥
 
Soil, water, food, leaves, flowers and fruits - if these things are not in someone's possession, then an active Sanyasi can put them to use if required. ॥ 36॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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