श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  14.46.35 
नाददीत परस्वानि न गृह्णीयादयाचित:।
न किंचिद् विषयं भुक्त्वा स्पृहयेत् तस्य वै पुन:॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
दूसरों का अधिकार न छीनो। बिना माँगे किसी से कुछ न लो। अच्छी वस्तु का सेवन करने के बाद फिर उसकी लालसा मत करो ॥35॥
 
Do not usurp the rights of others. Do not accept anything from anyone without request. After consuming a good thing, do not crave for it again. ॥ 35॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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