श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  14.46.34 
परेभ्यो न प्रतिग्राह्यं न च देयं कदाचन।
दैन्यभावाच्च भूतानां संविभज्य सदा बुध:॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
बुद्धिमान संन्यासी को चाहिए कि वह दूसरों के लिए भिक्षा न मांगे और समस्त जीवों पर दया करके कभी भी अनायास ही कुछ देने की इच्छा न करे ॥34॥
 
A wise Sannyasi should not beg for others and should never wish to give anything haphazardly out of compassion for all living beings. 34॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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