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पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व
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अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन
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श्लोक 32
श्लोक
14.46.32
यात्रामात्रं च भुञ्जीत केवलं प्राणयात्रिकम्।
धर्मलब्धमथाश्नीयान्न काममनुवर्तयेत्॥ ३२॥
अनुवाद
केवल उतना ही भोजन करो जितना जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक हो । धर्मानुसार प्राप्त भोजन ही खाओ । अपनी इच्छा से भोजन मत करो ॥ 32॥
Eat only as much food as is necessary to sustain the life. Eat only food obtained as per Dharma. Do not eat food of your own choice.॥ 32॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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