श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 29-30
 
 
श्लोक  14.46.29-30 
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च सत्यमार्जवमेव च॥ २९॥
अक्रोधश्चानसूया च दमो नित्यमपैशुनम्।
अष्टस्वेतेषु युक्त: स्याद् व्रतेषु नियतेन्द्रिय:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य, सरलता, क्रोध का अभाव, कुदृष्टि का त्याग, इन्द्रिय संयम और चुगली से विरत - इन आठ व्रतों का सदैव ध्यानपूर्वक पालन करो। इन्द्रियों को वश में रखो। 29-30॥
 
Always follow these eight vows carefully - non-violence, celibacy, truth, simplicity, absence of anger, renunciation of the evil eye, restraint of senses and refraining from gossiping. Keep the senses under control. 29-30॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.