श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  14.46.20 
लाभेन च न हृष्येत नालाभे विमना भवेत्।
न चातिभिक्षां भिक्षेत केवलं प्राणयात्रिक:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
भिक्षा मिलने पर प्रसन्न न हो और न मिलने पर दुःखी भी न हो। (लोभ के कारण) अधिक भिक्षा न इकट्ठा करो। भिक्षा उतनी ही लेनी चाहिए जितनी जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त हो।॥20॥
 
Do not be happy on getting alms and do not be sad on not getting them. Do not collect too much alms (out of greed). One should take alms only to the extent that is sufficient to sustain life.॥ 20॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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