श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 19-20h
 
 
श्लोक  14.46.19-20h 
अयाचितमसंक्लृप्तमुपपन्नं यदृच्छया।
कृत्वा प्राह्णे चरेद् भैक्ष्यं विधूमे भुक्तवज्जने॥ १९॥
वृत्ते शरावसम्पाते भैक्ष्यं लिप्सेत मोक्षवित्।
 
 
अनुवाद
बिना भिक्षा माँगे, बिना संकल्प किए, संयोग से प्राप्त भिक्षा से ही निर्वाह करना चाहिए। प्रातःकाल नित्य कर्म करने के पश्चात् जब रसोई से धुआँ निकलना बंद हो जाए, घर के सब लोग खा-पी लें और बर्तन धोकर रख दें, तब मोक्ष धर्म को जानने वाले संन्यासी को भिक्षा लेने की इच्छा करनी चाहिए।॥19 1/2॥
 
Without begging, without making any resolution, one should live by the alms which are obtained by chance. After performing the daily chores in the morning, when the smoke stops coming out of the kitchen, everyone in the house has eaten and drunk and the utensils have been washed and put away, then the Sanyasi who knows the religion of salvation should desire to take alms.॥19 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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