श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  14.46.15 
दान्तो मैत्र: क्षमायुक्त: केशान् श्मश्रु च धारयन्।
जुह्वन् स्वाध्यायशीलश्च सत्यधर्मपरायण:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
मनुष्य को अपनी इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए, सबके साथ मित्रता का व्यवहार करना चाहिए, क्षमाशील होना चाहिए, दाढ़ी, मूँछ और सिर के बाल मुँड़े रखने चाहिए, समय पर अग्निहोत्र करना चाहिए, वेदों का अध्ययन करना चाहिए और सत्य धर्म का पालन करना चाहिए॥15॥
 
One should control his senses, behave friendly with all, be forgiving and keep a shaved beard, moustache and hair on his head. He should perform Agnihotra on time, study the Vedas and follow the true religion.॥15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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