श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 46: ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन » श्लोक 12 |
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| | श्लोक 14.46.12  | प्रवृत्तमुदकं वायुं सर्वं वानेयमाश्रयेत्।
प्राश्नीयादानुपूर्व्येण यथादीक्षमतन्द्रित:॥ १२॥ | | | अनुवाद | वन में मिलने वाले पदार्थ जैसे बहता हुआ जल, वायु आदि का ही सेवन करना चाहिए। सदैव सावधान रहना चाहिए और व्रतानुसार क्रम से उपर्युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए।॥12॥ | | One should consume only the things found in the forest like flowing water, air etc. Always be cautious and eat the above mentioned things in sequence as per one's vow.॥ 12॥ |
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