श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 4: मरुत्तके पूर्वजोंका परिचय देते हुए व्यासजीके द्वारा उनके गुण, प्रभाव एवं यज्ञका दिग्दर्शन » श्लोक 6-7 |
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| | श्लोक 14.4.6-7  | विविंशस्य सुता राजन् बभूवुर्दश पञ्च च।
सर्वे धनुषि विक्रान्ता ब्रह्मण्या: सत्यवादिन:॥ ६॥
दानधर्मरता: शान्ता: सततं प्रियवादिन:।
तेषां ज्येष्ठ: खनीनेत्र: स तान् सर्वानपीडयत्॥ ७॥ | | | अनुवाद | महाराज! विविंश के पंद्रह पुत्र थे। वे सभी धनुर्विद्या में निपुण, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी, दानशील, धार्मिक, शांत और सदैव मधुर वाणी बोलने वाले थे। उनमें सबसे बड़े का नाम खानिनेत्र था। वह अपने सभी छोटे भाइयों को बहुत कष्ट देता था। 6-7. | | King! Vivinsha had fifteen sons. All of them were proficient in archery, were devotees of Brahmins, truthful, charitable, religious, calm and always spoke sweetly. The eldest among them was named Khaninetra. He used to trouble all his younger brothers a lot. 6-7. |
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