श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 32: ब्राह्मणरूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्यागविषयक संवाद  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  14.32.8 
जनक उवाच
पितृपैतामहे राज्ये वश्ये जनपदे सति।
विषयं नाधिगच्छामि विचिन्वन् पृथिवीमहम्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
जनक बोले - हे ब्राह्मण! यद्यपि मेरे पूर्वजों के समय से मिथिला राज्य पर मेरा अधिकार है, तथापि जब मैं अपनी आँखों से देखता हूँ तो सम्पूर्ण पृथ्वी पर खोजने पर भी मुझे अपना देश कहीं नहीं मिलता।
 
Janaka said - O Brahmin! Although I have a right over the kingdom of Mithila from the time of my forefathers, yet when I look with my eyes, I cannot find my country anywhere even after searching the entire earth.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.