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श्लोक 14.32.26  |
त्वमस्य ब्रह्मलाभस्य दुर्वारस्यानिवर्तिन:।
सत्त्वनेमिनिरुद्धस्य चक्रस्यैक: प्रवर्तक:॥ २६॥ |
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अनुवाद |
अब मुझे निश्चय हो गया है कि इस ब्रह्मप्राप्ति रूपी अजेय चक्र को, जो जगत् में सत्त्वगुणरूपी दुष्टता से घिरा हुआ है और जो कभी पीछे नहीं लौटता, केवल आप ही नियंत्रित करते हैं।॥26॥ |
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Now I am certain that you are the only one who controls this unstoppable wheel of attainment of Brahman, which is surrounded by the evil of the Sattva Guna in the world and which never turns back.'॥ 26॥ |
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इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिकेपर्वणि अनुगीतापर्वणि ब्राह्मणगीतासु द्वात्रिंशोऽध्याय:॥ ३२॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें ब्राह्मणगीताविषयक बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३२॥
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