श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 32: ब्राह्मणरूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्यागविषयक संवाद  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  14.32.25 
तत: प्रहस्य जनकं ब्राह्मण: पुनरब्रवीत्।
त्वज्जिज्ञासार्थमद्येह विद्धि मां धर्ममागतम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
जनक के ये वचन सुनकर ब्राह्मण हँसा और बोला, 'महाराज, आप तो जानते ही होंगे कि मैं धर्म हूँ और आपकी परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण का वेश धारण करके यहाँ आया हूँ।॥ 25॥
 
Hearing these words of Janaka, the Brahmin laughed and said, 'Maharaj, you must know that I am Dharma and I have come here in the guise of a Brahmin to test you.॥ 25॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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