श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 32: ब्राह्मणरूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्यागविषयक संवाद  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  14.32.19 
नाहमात्मार्थमिच्छामि रसानास्येऽपि वर्तत:।
आपो मे निर्जितास्तस्माद् वशे तिष्ठन्ति नित्यदा॥ १९॥
 
 
अनुवाद
मैं अपनी तृप्ति के लिए अपने मुख में स्थित रसों का भी स्वाद नहीं लेना चाहता; इसलिए मैंने जलतत्त्व को भी जीत लिया है और वह सदैव मेरे वश में रहता है॥19॥
 
I do not want to taste even the juices that are in my mouth for my own satisfaction; therefore, I have conquered even the water element and it always remains under my control.॥ 19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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