श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 32: ब्राह्मणरूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्यागविषयक संवाद » श्लोक 12 |
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| | श्लोक 14.32.12  | यथा मम तथान्येषामिति मन्ये द्विजोत्तम।
उष्यतां यावदुत्साहो भुज्यतां यावदुष्यते॥ १२॥ | | | अनुवाद | मैं मानता हूँ कि जैसे यह मेरा है, वैसे ही यह दूसरों का भी है। इसलिए हे द्विजश्रेष्ठ! जहाँ चाहो वहाँ रहो और जहाँ रहो, वहाँ का आनंद लो।॥12॥ | | I believe that just as it belongs to me, it belongs to others as well. Therefore, O best of the two, live wherever you wish and enjoy the place wherever you live.॥ 12॥ |
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