श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 31: राजा अम्बरीषकी गायी हुई आध्यात्मिक स्वराज्यविषयक गाथा  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  14.31.12 
तस्मादेतं सम्यगवेक्ष्य लोभं
निगृह्य धृत्याऽऽत्मनि राज्यमिच्छेत्।
एतद् राज्यं नान्यदस्तीह राज्य-
मात्मैव राजा विदितो यथावत्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
अतः इस लोभ के स्वरूप को भली-भाँति समझकर, धैर्यपूर्वक इसका दमन करके आत्मा पर नियंत्रण पाने की इच्छा करनी चाहिए। यही वास्तविक स्वराज्य है। यहाँ दूसरा कोई राज्य नहीं है। आत्मा का सच्चा ज्ञान हो जाने पर यही राजा है।॥12॥
 
‘Therefore, after understanding the nature of this greed well, one should patiently suppress it and desire to gain control over the self. This is the real self-rule. There is no other kingdom here. After having the true knowledge of the self, it is the king.'॥ 12॥
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