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श्लोक 14.3.6  |
असुराश्च सुराश्चैव पुण्यहेतोर्मखक्रियाम्।
प्रयतन्ते महात्मानस्तस्माद् यज्ञा: परायणम्॥ ६॥ |
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अनुवाद |
महामनस्वी देवता और दानव पुण्य के लिए यज्ञ करने का प्रयत्न करते हैं; अतः यज्ञ ही परम आश्रय है ॥6॥ |
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Great-minded gods and demons attempt to perform sacrifices for the sake of virtue; hence sacrifice is the ultimate refuge. ॥ 6॥ |
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