श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  14.3.6 
असुराश्च सुराश्चैव पुण्यहेतोर्मखक्रियाम्।
प्रयतन्ते महात्मानस्तस्माद् यज्ञा: परायणम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
महामनस्वी देवता और दानव पुण्य के लिए यज्ञ करने का प्रयत्न करते हैं; अतः यज्ञ ही परम आश्रय है ॥6॥
 
Great-minded gods and demons attempt to perform sacrifices for the sake of virtue; hence sacrifice is the ultimate refuge. ॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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