श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  14.3.5 
यज्ञेन तपसा चैव दानेन च नराधिप।
पूयन्ते नरशार्दूल नरा दुष्कृतकारिण:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
नरेश्वर! पुरुषसिंह! पापी मनुष्य यज्ञ, दान और तप से ही पवित्र हो जाते हैं॥5॥
 
Nareshwar! Purusha Singh! Sinful people become pure only through sacrifice, charity and penance. 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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