श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  14.3.4 
तपोभि: क्रतुभिश्चैव दानेन च युधिष्ठिर।
तरन्ति नित्यं पुरुषा ये स्म पापानि कुर्वते॥ ४॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर! जो लोग पाप करते हैं, वे सदैव तप, यज्ञ और दान के द्वारा अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं॥4॥
 
Yudhishthira! Those who commit sins always redeem themselves by penance, sacrifices and charity. ॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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