श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  14.3.19 
एवमुक्तस्तु पार्थेन कृष्णद्वैपायनस्तदा।
मुहूर्तमनुसंचिन्त्य धर्मराजानमब्रवीत्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
जब कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने ऐसा कहा, तब श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने कुछ देर विचार करके धर्मराज से कहा-॥19॥
 
When Yudhishthira, the son of Kunti, said this, then Shri Krishna Dwaipayana Vyasa, after thinking for a while, said to Dharmaraja -॥ 19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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