श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  14.3.18 
न च प्रतिनिधिं कर्तुं चिकीर्षामि तपोधन।
अत्र मे भगवन् सम्यक् साचिव्यं कर्तुमर्हसि॥ १८॥
 
 
अनुवाद
तपधान! मुख्य वस्तु के अभाव में जो अन्य वस्तु दी जाती है, वह प्रतिनिधि दक्षिणा कहलाती है; परंतु मैं प्रतिनिधि दक्षिणा देना नहीं चाहता; अतः हे प्रभु! इस विषय में मुझे उचित उपदेश दीजिए॥18॥
 
Tapadhaan! Any other thing which is given in the absence of the main thing is called representative dakshina; but I do not wish to give representative dakshina; therefore, O Lord! Kindly give me proper advice in this matter.॥ 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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