श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 3: व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  14.3.17 
पृथिवी दक्षिणा चात्र विधि: प्रथमकल्पित:।
विद्वद्भि: परिदृष्टोऽयं शिष्टो विधिविपर्यय:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
अश्वमेध यज्ञ में सम्पूर्ण पृथ्वी दक्षिणा देनी चाहिए। इसे ही विद्वानों ने मुख्य कल्प माना है। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी किया जाए वह नियम के विरुद्ध है।॥17॥
 
In the Ashwamedha Yagna, the entire earth should be given as Dakshina. This is considered by the scholars as the main Kalpa. Anything done other than this is against the rules.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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