श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 28: ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद*  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  14.28.12 
अत्र त्वां मन्यतां भ्राता पिता माता सखेति च।
मन्त्रयस्वैनमुन्नीय परवन्तं विशेषत:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
श्रुति कहती है ‘पशो! इस विषय में तुम्हें अपने भाई, पिता, माता और मित्र की अनुमति लेनी चाहिए।’ इस श्रुति के अनुसार विशेषतः इस दास्य पशु को ग्रहण करने के पश्चात् इसके पिता और माता आदि से अनुमति ले लेना चाहिए (अन्यथा तुम पर हिंसा का दोष अवश्य लगेगा)।
 
Shruti says 'Pasho! In this matter, you should get the permission of your brother, father, mother and friend.' According to this Shruti, especially after taking this enslaved animal, take permission from its father and mother etc. (otherwise you will definitely be accused of violence). 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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