श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 28: ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद* » श्लोक 11 |
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| | श्लोक 14.28.11  | यतिरुवाच
प्राणैर्वियोगे च्छागस्य यदि श्रेय: प्रपश्यसि।
छागार्थे वर्तते यज्ञो भवत: किं प्रयोजनम्॥ ११॥ | | | अनुवाद | ऋषि बोले, "यदि आप बकरे के प्राण जाने के बाद भी उसका कल्याण देखते हैं, तो यह यज्ञ उसी बकरे के लिए किया जा रहा है। इस यज्ञ से आपका क्या प्रयोजन है?" | | The sage said, "If you see the welfare of the goat even after its life is lost, then this sacrifice is being performed for that goat only. What is your purpose in this sacrifice?" |
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