श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 28: ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद*  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  14.28.10 
सूर्यं चक्षुर्दिश: श्रोत्रं प्राणोऽस्य दिवमेव च।
आगमे वर्तमानस्य न मे दोषोऽस्ति कश्चन॥ १०॥
 
 
अनुवाद
‘आँखें सूर्य में, कान दिशाओं में और प्राण आकाश में विलीन हो जाएँगे। शास्त्रविधि के अनुसार आचरण करने से मुझे कोई दोष नहीं लगेगा।’॥10॥
 
‘The eyes will merge in the sun, the ears in the directions and the life will merge in the sky. I will not be blamed for behaving as per the injunctions of the scriptures.’॥10॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.